जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें, जानें लड्डू गोपाल की कथा

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लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें?
लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें?

जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें? देश भर में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है। जन्माष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। मथुरा, वृंदावन समेत भारत के कई हिस्सों में इस दिन दही हांडी की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए कुछ सरल विधि को जानना बहुत ही आवश्यक है। किसी भी देवी देवता की पूजा नियमानुसार करने से पूजा का अच्छा फल मिलता है। आइए जानते हैं जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की यानी लड्डू गोपाल की पूजा कैसे करें और पूजा में किन-किन वस्तुओं का इस्तेमाल करें?

जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा विधि

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सबसे पहले स्नान करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। इसके बाद चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसमें भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को बिठाएं। भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप लड्डू गोपाल अत्यंत ही मनमोहक होते हैं। मूर्ति बैठाने के बाद शंख में गंगाजल भरकर लड्डू गोपाल को स्नान कराएं फिर पंचामृत से लड्डू गोपाल को स्नान कराएं।

इसके बाद भगवान लड्डू गोपाल को घी से स्नान कराएं। दोबारा गंगाजल लेकर लड्डू गोपाल को स्नान कराएं और स्नान कराने के बाद उन्हें पीले रंग के वस्त्र पहनाएं। लड्डू गोपाल के हाथों में बांसुरी रख लें और फिर गोपाल जी को तिलक लगाएं। फिर लड्डू गोपाल जी को पालने में बिठा दें और उन्हें 5 तरह के मेवे, फल, मिठाईयां और धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं। पूजा में लड्डू गोपाल को पुष्प भी अर्पित करें।

किन बातों का रखें ध्यान

जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा के दौरान एक महाउपाय भी करें। इससे पूजा का फल दोगुना मिलेगा। श्री कृष्ण जन्माष्टमि के दिन भगवान श्री कृष्ण को पंच मेवे की खीर अर्पित करें। इस बात का ध्यान रखें कि इसमें मखाने और तुलसी का पत्र जरूर डालना चाहिए। इसके बाद जन्माष्टमी के दिन ‘ऊँ क्लीं कृष्णाय गोपीजन वल्लभाय स्वा:’ मंत्र का जाप करें।

जन्माष्टमी पर इन मंत्रों का करें जाप ( Janmashtami Krishna Mantra)

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात
ॐ कृष्णाय वायुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय मनो नम:
ॐ श्रीं नम: श्री कृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
गोकुल नाथाय नम:

लड्डू गोपाल को भोग कैसे लगाएं?

जन्माष्टमी के दिन पूजा के साथ-साथ लड्डू गोपाल को भोग लगाना अभी बहुत ही अच्छा होता है। लड्डू गोपाल को भोग लगाने से लड्डू गोपाल जल्दी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

मक्खन और मिश्री का भोग

मक्खन और मिश्री का भोग लड्डू गोपाल को अतिप्रिय है। जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल को इन दोनों ही चीजों का बहुत जरूर लगाना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखें कि भोग लगाने वक्त भोग में तुलसी के पत्ते का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।

धनिया पंजीरी का भोग

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को धनिया पंजीरी का भोग लगाया जाता है। इसके लिए धनिया पाउडर में काजू, मिश्री, घी और बादाम का एक साथ मिला लें। अब लड्डू गोपाल के सामने इस का भोग लगाएं। इसमें तुलसी पुत्र जरूर शामिल करें।

मखाने की खीर का भोग

लड्डू गोपाल को मखाने की खीर बहुत पसंद है। जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल को तुलसी पत्र मिलाकर मखाने और मेवे वाली खीर का भोग लगाना चाहिए। मखाना पाग को जन्माष्टमी के मौके पर ही तैयार किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को इसका भोग जरूर लगाना चाहिए।

पंचामृत का भोग

जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल को पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। बिना पंचामृत के भोग के श्री कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल को पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और प्रसाद के रूप में भी पंचामृत को ही बांटा जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि इसमें तुलसी के पत्ते का इस्तेमाल जरूर होना चाहिए।

आटे की पंजीरी का भोग

ऐसा माना जाता है कि आटे की पंजीरी भगवान श्री कृष्ण को बहुत ही पसंद है इसलिए धनिया और आटे को मिलाकर पंजीरी का भोग कान्हा को जरूर लगाना चाहिए।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आरती

आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला 
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक

चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं.
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग,  मधुर मिरदंग ग्वालिन संग.

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा.
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस.

जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू 
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद.
टेर सुन दीन दुखारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

लड्डू गोपाल की कथा

भगवान श्री कृष्ण को कई नामों से जाना जाता है। जैसे श्याम, मोहन, लड्डू गोपाल, बंशीधर, कान्हा इत्यादि नाम भगवान श्री कृष्ण के हैं। लेकिन इन सब में लड्डू गोपाल अतिप्रिय नाम है और लड्डू गोपाल की पूजा सबसे ज्यादा की जाती है। लड्डू गोपाल के स्वरूप में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है।

लड्डू गोपाल की कथा का आरंभ आइए करते हैं। इसमें आज आपको जानने को मिलेगा कि कैसे श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का नाम लड्डू गोपाल पड़ा? आजकल भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को ज्यादातर जगहों पर लड्डू गोपाल के नाम से ही जाना जाता है।

माना जाता है कि ब्रजभूमि में भगवान श्री कृष्ण के एक परमभक्त कुंभनदास हुआ करते थे। वह ब्रजभूमि में ही निवास करते थे। कुंभन दास का एक पुत्र रघुनंदन था। कुंभन दास हर समय, हर पल श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। वह पूरे नियम से भगवान श्री कृष्ण की पूजा और सेवा किया करते थे और श्री कृष्ण को छोड़कर वह कहीं दूसरी जगह नहीं जाते थे। ऐसा वह इसलिए करते थे ताकि श्री कृष्ण की सेवा में कोई कमी ना रह जाए।

एक दिन वृंदावन से उनके लिए भागवत कथा करने का न्योता आया। वह बड़े प्रफुल्लित हुए। हालंकि पहले तो कुंभन दास ने मना कर दिया, लेकिन कुछ सोच विचार करने के बाद वह कथा में जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे रोजाना कथा करके वापस लौट आएंगे। इससे भगवान की सेवा का नियम भी नहीं टूटेगा।

कुंभन दास ने अपने पुत्र रघुनंदन को समझाया कि उन्होंने भोग को तैयार करके रख दिया है। तुम्हें बस समय पर ठाकुर जी को भोग लगा देना है। इतना कहकर कुंभन दास वहां से ब्रजभूमि के लिए प्रस्थान कर गए। पिता के जाने के बाद पुत्र रघुनंदन ने भोजन की थाली कृष्ण के सामने रखी और सरल मन से आग्रह किया कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ।

कुंभनदास के पुत्र रघुनंदन के मन में यह छवि थी कि श्री कृष्ण आकर अपने हाथों से भोजन को ग्रहण करेंगे, जैसे हम सभी मनुष्य करते हैं। रघुनंदन ने बार-बार आग्रह किया लेकिन भोजन वैसे का वैसे ही रखा रहा। ऐसा होने के बाद रघुनंदन उदास हो गया और रोते हुए पुकारा कि हे श्री कृष्णा आओ और भोग लगाओ।

रघुनंदन के सच्चे हृदय की पुकार को भगवान ने सुन लिया और वह आ गए। रघुनंदन की पुकार के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बालक का स्वरूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास को लगा कि बच्चे को भूख लगी होगी तो वही सारा भोजन खा गया होगा।

लेकिन यह 1 दिन की कहानी नहीं थी बल्कि यह है रोज की कहानी हो गई थी। अब कुंभन दास को शक होने लगा। एक दिन कुंभन दास ने लड्डू बनाकर थाली में रखे और छुपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है। भोग को लेकर रघुनंदन ने रोज की तरह भगवान श्री कृष्ण को पुकारा तो वह बालक स्वरूप में प्रकट हुए और लड्डू खाने लगे।

यह देखकर कुंभन दास दौड़ते हुए और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे। उस समय श्रीकृष्ण के एक हाथ में लड्डू और दूसरे हाथ में लड्डू लिए मुख में जाने को ही था कि वो एकदम से मूर्ति हो गए। उसके बाद से ही श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है और वे तभी से लड्डू गोपाल कहलाने लगे।