इस संसार के समस्त दुखों से अपने आप को बचाने के लिए और जीवन में सुख शांति तथा समृद्धि पाने के लिए लोग मां भगवती की पूजा करते हैं। माँ भगवती दुर्गा के अनंत रूप हैं। नवरात्रि के समय मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कि माँ दुर्गा की पूजा कैसे करनी चाहिए? किस दिन माँ दुर्गा की पूजा करना चाहिए और कौन सा दिन मां दुर्गा की पूजा के लिए श्रेष्ठ दिन होता है?
नवरात्रों में मां भगवती दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। माता अपने इन रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं और उनके दुख हर लेती हैं। मां के नौ रूप हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धीदात्री। माँ इन सभी रूपों में भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।
जो भी भक्त नवरात्रों में सच्चे मन से मां भगवती की पूजा करते हैं, उनके जीवन में कभी भी दुख और कष्ट नहीं आते। यदि कभी विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होती भी है तो वह जल्द ही खत्म हो जाती है। इन विपरीत परिस्थितियों में मां भगवती अपने भक्तों की सदा मदद करती हैं।
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नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने के लिए कलश स्थापना की जाती है। शारदीय नवरात्र में माता की विशेष पूजा का विधान है। शारदीय नवरात्र में 9 दिनों तक बड़े ही धूमधाम से मां भगवती दुर्गा की पूजा की जाती है। इन 9 दिनों में भक्तगण भूखे प्यासे व्रत रखते हैं।
माँ दुर्गा की पूजा कैसे करें?
- 1 लकड़ी की चौकी को गंगाजल या स्वच्छ जल से धोकर पवित्र कर लें।
- अब इसे साफ कपड़े से पोछकर लाल कपड़ा बिछाएं।
- चौकी के दाएं ओर कलश रखें।
- अब चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
- उसके बाद माता रानी को लाल रंग की चुनरी ओढ़ाएं।
- धूप-दीपक जलाकर मां दुर्गा की पूजा करें।
- नौ दिनों माता के सामने अखंड दीप ज्योत जलाएं।
- देवी माँ दुर्गा को तिलक लगाएं।
- माँ दुर्गा को चूड़ी, सिंदूर, वस्त्र, कुमकुम, पुष्प, हल्दी, रोली, सुहान का समान अर्पित करें।
- मां दुर्गा को इत्र, मिठाई और फल भी अर्पित करें।
- अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। देवी मां के स्तोत्र, सहस्त्रनाम आदि का पाठ करें।
- उसके बाद माँ दुर्गा की आरती करें।
- उसके बाद वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
- पूरे नौ दिनों तक नवरात्र में जौ पात्र में जल का छिड़काव करते रहें।
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माँ दुर्गा की पूजा की पूजन सामग्री
मां दुर्गा की फोटो या प्रतिमा, सिंदूर, कपूर, केसर, धूप, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, पानी वाला जटायुक्त नारियल, दुर्गासप्तशती किताब, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पांच मेवा, घी, लोबान, गुग्गुल, लौंग, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर।
इसके साथ-साथ हवन कुंड, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, शहद, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल रेशमी चूड़ियां, सिंदूर, आम के पत्ते, लाल वस्त्र, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस इत्यादि रखें।
कलश, साफ चावल, कुमकुम,मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल और मिठाई, दुर्गा चालीसा व आरती की किताब, कलावा, मेवा, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ आदि माँ दुर्गा की पूजा में शामिल किया जाता है।
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माँ दुर्गा की पूजा किस दिन करें?
नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा का विशेष विधान है। नवरात्र के मौसम में मां भगवती दुर्गा की पूजा करने से भक्तों के जीवन में सभी प्रकार के कष्टों का नाश हो जाता है और जीवन सुखमय हो जाता है। मां अपने भक्तों पर असीम कृपा करती हैं और इस दुनिया से जाने के बाद भी उन्हें माता की लोक की प्राप्ति होती है।
जिस प्रकार बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु का और देव गुरु बृहस्पति का होता है। उसी प्रकार सप्ताह का कोई ना कोई दिन किसी ना किसी देवी-देवता का होता है। मां दुर्गा की पूजा के लिए सबसे उत्तम दिन शुक्रवार का दिन है। शुक्रवार का दिन शक्ति का दिन माना जाता है।
मां दुर्गा शक्ति का रूप है। शक्ति की पूजा शुक्रवार को करने से जीवन के सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। मां दुर्गा को दुर्गतिनाशिनी भी कहा जाता है। इसलिए शुक्रवार को मां दुर्गा की पूजा करने से भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है। शुक्रवार को सुबह सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके और लाल वस्त्र धारण करके मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। पूजा के समय दीपक अवश्य जलाना चाहिए।